Top 10 Famous Historical Places in Lucknow with Pictures in Hindi
लखनऊ शहर, जिसे औपचारिक रूप से अवध के नाम से जाना जाता है, जो अपने 'नज़ाकत और नफ़ासत', तौर-तरीकों और अदब और तहज़ीब के लिए पहचाना जाता है। नवाबों का शहर लखनऊ के पर्यटक आकर्षणों के कारण एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल (Popular tourist destination) बन गया है, जिनमें से ज़्यादातर ऐतिहासिक स्मारक शामिल हैं।
लंबे वक़्त तक मुग़ल बादशाहों द्वारा शासित लखनऊ के विश्व स्तरीय ऐतिहासिक स्थानों को किसी परिचय की ज़रुरत नहीं है। आश्चर्यजनक वास्तुकला, आलीशान मेहराब, शानदार बाग़ीचे और लम्बे चौड़े आंगनों से भरपूर, लखनऊ के ऐतिहासिक स्थान शहर के ख़ूबसूरत अतीत और सांस्कृतिक विरासत (cultural heritage) की गवाही देते हैं।
लखनऊ के ये आलीशान स्मारक और ऐतिहासिक स्थान दुनिया भर में मशहूर हैं और साल भर बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। पर्यटकों को लखनऊ में प्राचीन शासकों की भव्य और शाही जीवनशैली की एक झलक दिखती है जो क़रीब और दूर-दराज़ के लोगों को अपने घर बार और दोस्तों के साथ यहाँ आने के लिए लुभाती है।
अगर आप इतिहास के शौक़ीन हैं और सफर करना और समय के कुछ पन्ने पलटना पसंद करते हैं, तो लखनऊ एक ऐसी जगह है जहाँ आपको ज़रूर आना चाहिए। आइये उन 10 ऐतिहासिक स्थानों पर एक नज़र डालें जो लखनऊ को इतिहास प्रेमियों के सपनों की जगह बनाती हैं।
1. Bara Imambara (भूल भुलैय्या):
बड़ा इमामबाड़ा, जिसे आसफ़ी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है, भारत में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक इमामबाड़ा परिसर है, जिसे साल 1784 में अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने बनवाया था।
इमारत परिसर में एक बड़ी असफ़ी मस्जिद, भुल-भुलैया और बाउली, बहते पानी वाला एक गहरा कुआँ भी शामिल है। दो भव्य प्रवेश द्वार मुख्य हॉल की तरफ ले जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि छत तक पहुंचने के लिए 1024 रास्ते हैं लेकिन वापस आने के लिए सिर्फ दो ही रास्ते हैं जो कि पहले गेट या आखिरी गेट से होते हैं।
बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण 1780 में शुरू किया गया था, और इस भव्य परियोजना को शुरू करने में नवाब आसफ-उद-दौला का एक उद्देश्य था जो उस क्षेत्र के लगभग एक दशक तक अकाल रहने की वजह से उससे ग्रसित लोगो को रोजगार प्रदान करना था।
ऐसा कहा जाता है कि आम लोग दिन में इमारत के निर्माण में काम करते थे, जबकि पैसे वाले और अन्य रईस लोग रात में उस दिन खड़ी की गई किसी भी चीज़ को तोड़ने के लिए काम करते थे। यह रोजगार सृजन की परियोजना थी। इमामबाड़ा का निर्माण कार्य साल 1784 में पूरा हुआ था। इमामबाड़ा के निर्माण की अनुमानित लागत पांच लाख रुपये से लेकर दस लाख रुपये के बीच बताई जाती है। पूरा होने के बाद भी, नवाब साहब इसकी सजावट पर सालाना 4-5 लाख रुपये ख़र्च किया करते थे।
Entry Fee: Rs. 25.00 (Indians), Rs. 500.00 (Foreigner) (inclusive of Bara Imambara, Chhota Imambara, Picture Gallery, Shahi Hamam).
Timing: Sunrise to Sunset (सूर्योदय से सूर्यास्त तक)
Address: Husainabad Trust Rd, Machchhi Bhavan, Lucknow, Uttar Pradesh 226003
Location: Google Map directions
2. Rumi Gate (रूमी दरवाज़ा):
रूमी दरवाज़ा, उर्दू: رومی دروازه, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत, इसे तुर्की गेट के रूप में जाना जाता है, एक ख़ूबसूरत दरवाज़ा जिसे 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा बनाया गया था। यह अवधी वास्तुकला का एक उदाहरण है। रूमी दरवाजा, जिसकी ऊंचाई 60 फीट है, इस्तांबुल में सबलाइम पोर्ट के जैसे दिखने वाला बनाया गया था। यह ऐतिहासिक तुर्की राजधानी कॉन्स्टेंटिनोपल (Constantinople) की एक बनावट जैसा दिखता है।
यह लखनऊ में आसफ़ी इमामबाड़ा, टीले वाली मस्जिद के क़रीब है आप बड़ा इमामबाड़ा पहुँचने पर रूमी दरवाज़ा पर ज़रूर रुकें, ये लखनऊ की सबसे खूबसूरत इमारतों और लखनऊ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थानों में से एक है।
Rumi Darwaza लखनऊ शहर के लिए एक लोगो जैसा बन गया है, जिसे लोग लखनऊ शहर के नाम के साथ लगाना ख़ासा पसंद करते हैं।
ऐतिहासिक रूप से यह पुराने लखनऊ का प्रवेश द्वार था, लेकिन आज यह इसके प्रतीक के रूप में कार्य करता है। नवाब आसफ़-उद-दौला ने 18वीं शताब्दी में अकाल के दौरान तरह-तरह संरचनाओं का निर्माण किया था। अगर आप इस टावर की शानदार फोटो लेना चाहते हैं तो यहाँ रात में आएं।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 24x7 (किसी भी समय)
Address: 17/11 Hussainabad Road, Lajpat Nagar Colony, Lajpat Nagar, Machchhi Bhavan, Lucknow, Uttar Pradesh 226003
Location: Google Map directions
3. British Residency (ब्रिटिश रेज़ीडेन्सी):
रेजीडेंसी, जिसे ब्रिटिश रेजीडेंसी और रेजीडेंसी कॉम्प्लेक्स भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में एक सामान्य परिसर में कई इमारतों का एक समूह है। यह ब्रिटिश रेजिडेंट जनरल का निवास था जो नवाब के दरबार में एक प्रतिनिधि था। रेजीडेंसी शहर के मध्य में शहीद स्मारक, टेहरी कोठी और उच्च न्यायालय भवन जैसे अन्य स्मारकों के आसपास स्थित है।
रेजीडेंसी नामक प्रसिद्ध आवासीय परिसर की नींव 1775 में अवध के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा ब्रिटिश विज़िटर्स जो फैजाबाद से लखनऊ आगये उनके ठहरने को ध्यान में रख के की गई थी। इसका निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ और नवाब सआदत अली खान (1798-1814) के शासनकाल के दौरान मुख्य रेजीडेंसी भवन का निर्माण पूरा हुआ था, जो अवध सूबे के पांचवें नवाब थे (अंग्रेजों ने इसे अवध कहा था)। बढ़ती आवश्यकता के साथ, समय-समय से इस परिसर में कई इमारतें जोड़ी गईं।
नवाब सआदत अली खान ने रेजीडेंसी के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में कर्नल बैली के लिए एक विशेष गार्ड ऑफ ऑनर की भी व्यवस्था की, इसके साथ ही इस पोर्टल को बैली गार्ड गेट के नाम से जाना जाने लगा।
इसका निर्माण कार्य 1780 से 1800 ई. के बीच हुआ। रेजीडेंसी अब खंडहर के रूप में मौजूद है।
Entry Fee: Rs.5 for Indians, Rs.100/- or US$ 2 per person for foreign visitor (Child entry below age 15 years is free)
Timing: 10:00 AM to 4:30 PM
Address: Mahatma Gandhi Marg, Deep Manak Nagar, Qaisar Bagh, Lucknow, Uttar Pradesh 226001
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4. Chattar Manzil (छतर मंज़िल):
इस भव्य भवन का निर्माण नवाब सआदत अली खाँ (1798-1814) ने अपनी माँ 'छतर कुंअर' के नाम पर करवाना शुरू किया लेकिन इसे बाद में बादशाह ग़ाज़ीउद्दीन हैदर (1814-1827) ने पूरा किया। नासिरुद्दीन हैदर (1827-1837) के शाशन काल में इस भवन को पर्याप्त रूप से अलंकृत किया गया।
छतर मंज़िल इंडो-इटालियन स्थापत्य का एक भवन था। कहते हैं कि भूतलों की दीवारों से गोमती का पानी टकराता था, जिससे उन भूतलों के भवनों में भी बराबर ठंडक बनी रहती थी। इस भवन का प्रयोग मुख्यत: अवध की बेग़मों के निवास के लिए किया जाता था। ऐसा भी कहा जाता है कि सिंहासनारोहण के समय जब नवाब ने छत्र धारण किया, तभी उसने इस महल के ऊपर भी छत्र लगवाया था।
लखनऊ के अंतिम शाशक नवाब वाजिद अली शाह (1847-1856) के समय तक ये महल शाही निवास के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में छतर मंज़िल का प्रयोग क्रांतिकारियों द्वारा किया गया।
1857 के युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इसका एक हिस्सा नष्ट कर दिया था। 1857 के युद्ध के बाद सरकार ने इस इमारत को एक अमेरिकी एनजीओ को आवंटित कर दिया था, जिसने इसे मनोरंजन उद्देश्यों के लिए एक क्लब के रूप में इस्तेमाल किया था, 1947 तक छतर मंजिल का इस्तेमाल यूनाइटेड सर्विसेज क्लब के रूप में किया जाता था।
स्वतंत्रता के बाद, इस भवन को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद को आवंटित किया गया था, जिसने 1950 से इसे केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (Council of Scientific and Industrial Research) के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन अब इसे सीडीआरआई (CDRI) द्वारा खाली कर दिया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा महल के नवीनीकरण और संरक्षण के बाद इसमें दो संग्रहालय और एक पुस्तकालय स्थापित करने की योजना बनाई है।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 9:30 am to 6:00 pm
Address: Mahatma Gandhi Marg, Qaisar Bagh, Lucknow, Uttar Pradesh 226001
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5. Dilkusha Kothi Palace (दिलकुशा कोठी पैलेस):
शानदार दिलकुशा पैलेस, लखनऊ के cantonment area (छावनी क्षेत्र) में राजभवन के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
इस कोठी का निर्माण 1800 के आसपास अवध के शासक नवाब सआदत अली खान के मित्र ब्रिटिश निवासी मेजर गोर ओउसली (Gore Ouseley) ने किया था। शुरुआत में इसका उद्देश्य अवध के नवाबों के लिए एक शिकार लॉज के रूप में था, हालांकि बाद में इसे ग्रीष्मकालीन रिसॉर्ट (summer resort) के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा।
इसके डिजाइन में बदलाव नवाब राजा नसीर-उद-दीन हैदर (1827-1837) ने किए थे। इमारत में पैटर्न वाली दीवारें थीं और असामान्य रूप से कोई आंतरिक आंगन नहीं था जैसा कि भारतीय वास्तुकला में पारंपरिक था। इसलिए इमारत का फुटप्रिंट छोटा था और यह बड़े क्षेत्र तक फैला नहीं था, लेकिन पारंपरिक स्थानीय वास्तुकला से ऊंचा था। ये अपने पड़ोसी, ला कॉन्स्टेंटिया की तरह, यह लखनऊ की मुख्य नदी, गोमती के तट पर स्थित है।
यह डिज़ाइन इंग्लैंड के नॉर्थम्बरलैंड में सीटन डेलावल हॉल (Seaton Delaval Hall) की शैली से आश्चर्यजनक रूप से मिलता जुलता है। सीटन डेलावल हॉल 1721 में बनाया गया था और इसे सर जॉन वानब्रुघ (Sir John Vanbrugh) ने डिजाइन किया था, जिन्होंने ब्लेनहेम पैलेस (Blenheim Palace) को भी डिजाइन किया था। दिलकुशा कोठी को फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न (Samuel Bourne) द्वारा 1864-1865 के एक दुर्लभ प्रारंभिक एल्बम प्रिंट में दर्शाया गया है।
ब्रिटिश अभिनेत्री मैरी लिनली टेलर दिलकुशा कोठी से प्रभावित हुईं और उन्होंने सियोल में अपने घर का नाम इसके नाम पर रखा। उन्होंने बताया, "भारत में उस पल से जब मैंने पहली बार दिलकुशा, The Palace of Heart's Delight देखा था, मैंने तभी सोच लिया था जब मैं अपने घर को 'दिलकुशा' नाम दूंगी।"
आज स्मारक के रूप में केवल कुछ टावर और बाहरी दीवारें ही रह गयी हैं, हालांकि गार्डेन एरियाबचा है। 1857 में लखनऊ की घेराबंदी में शामिल होने के दौरान रेजीडेंसी और पास के ला मार्टिनियर स्कूल सहित इस घर पर गोलाबारी की गई थी।
इसमें अभी भी शाही माहौल है जो दर्शाता है कि यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य वाली इमारत है। भारतीय इतिहास के कुछ सबसे रोमांचक पल वहां घटित हुए हैं। यह लखनऊ के कम प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों में से एक है लेकिन लखनऊ के टॉप पर्यटक आकर्षणों (tourist attractions) में से एक है।
Entry Fee: Rs.5 for Indians, Rs.100/- or US$ 2 per person for foreign visitor
Timing: 8:00 AM to 7:00 PM
Address: Bibiapur Marg, Neil Lines, Cantonment, Lucknow, Uttar Pradesh 226002
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6. Safed Baradari (सफ़ेद बारादरी):
क़ैसर बाग की बारादरी, जिसे उर्दू में (سفید بارادری) सफेद बारादरी के नाम से भी जाना जाता है, ये भारत के लखनऊ उत्तर प्रदेश में एक सफ़ेद संगमरमर की इमारत है, ये अपने रंग (White color) की वजह से, उत्सव और उल्लास की एक जगह बन गयी है जहां शहर के ख़ास और पैसे वाले लोग शादियां और रिसेप्शन आयोजित करते हैं।
खुशी के ऐसे मौकों पर जाने वाले लोगों के लिए शायद यह जानकर झटका लगेगा कि शुरुआत में इस इमारत का मतलब 'शोक का महल' था और इसका नाम क़सर-उल-अज़ा रखा गया था। इसका निर्माण अवध के अंतिम राजा वाजिद अली शाह ने कर्बला में इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत के लिए अज़ादारी (शोक) मनाने के लिए एक इमामबाड़ा के रूप में करवाया था।
1856 में अवध पर कब्जे के बाद, बारादरी का इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा राजा के शासन के अधिकारियों और रईसों और उनके रिश्तेदारों द्वारा याचिकाओं और दावों के लिए अदालत आयोजित करने के लिए किया जाता था। बाद में (1923 के आसपास) इसे अवध के तालुकेदारों को उनके 'अंजुमन' (संघ) के लिए ब्रिटिश साम्राज्य की रानी के प्रति उनकी अधीनता और वफादारी की सराहना के रूप में सौंप दिया गया, जिसका नाम बदलकर ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन ऑफ अवध कर दिया गया। बारादरी अभी भी उनके ही कब्जे और नियंत्रण में है।
बारादरी के मुख्य हॉल में एसोसिएशन के संस्थापक महाराजा मान सिंह और बलरामपुर के दिग्विजय सिंह की दो संगमरमर की मूर्तियाँ हैं। सर मान सिंह की प्रतिमा को £2,000 की लागत से लंदन के फार्मर और ब्रिंडली द्वारा तैयार किया गया था, और इसका अनावरण 13 अगस्त 1902 को आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट-गवर्नर सर जेम्स जॉन डिग्स ला टौचे द्वारा किया गया था।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 8:00 AM to 7:00 PM
Address: Maharaja Mahmudabad, Near Qaisar Bagh Chauraha, Lucknow, Uttar Pradesh 226001
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7. Satkhanda (सतखंडा):
सतखंडा वॉचटावर, या "सात मंजिलों का टावर", उत्तर प्रदेश के हुसैनाबाद लखनऊ में छोटा इमामबाड़ा के बाहर स्थित है। सतखंडा का निर्माण 1837 और 1842 के बीच अवध के तीसरे शासक, नवाब मुहम्मद अली शाह के शासनकाल के दौरान किया गया था, लेकिन उनका सपना अधूरा रह गया और वर्ष 1842 में उनकी मौत के बाद निर्माण कार्य रुक गया, अपने नाम सतखंडा के बावजूद, ये टॉवर सिर्फ चार मंजिला है। अली शाह इसे दिल्ली के क़ुतुब मीनार और इटली में पीसा की झुकी मीनार के जैसा बनाना चाहते थे। इसका मुख्य उद्देश्य चाँद देखना है।
67 मीटर ऊंची लाल ईंट की इमारत में फ्रांसीसी और इतालवी शैली की वास्तुकला का शानदार मिश्रण है। इस संरचना की एक ख़ासियत यह है कि इसकी प्रत्येक मंजिल का निर्माण इसकी निचली आधार मंजिल की ऊंचाई और चौड़ाई के घटते क्रम में किया गया है। सतखंडा का वास्तुशिल्प डिजाइन दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक 'पीसा की झुकी मीनार' से प्रभावित है। सतखंडा नवाब मुहम्मद अली शाह (1837-1842) के शासनकाल के दौरान बनाई गयी सबसे आकर्षक और अद्भुत संरचनाओं में से एक है।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 24x7 (किसी भी समय)
Address: Husainabad Trust Rd, Husainabad, Lucknow, Uttar Pradesh 226003
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8. Tomb (Maqbara) of Saadat Ali Khan (सआदत अली खाँ का मक़बरा):
मक़बरा सआदत अली खां लखनऊ के कैसर बाग इलाके में स्थित है। बेग़म हज़रत महल पार्क के पास स्थित, यह लखनऊ में घूमने के लिए लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थानों में से एक है।
मक़बरा सआदत अली खां नवाब सआदत अली खान की क़ब्र है, जो अवध के छठे नवाब वज़ीर थे। इसका निर्माण सआदत अली खान के बेटे नवाब ग़ाज़ी-उद-दीन हैदर ने अपने पिता को एक भव्य इमारत उपहार में देने के लिए खास बाजार, जिसे अब कैसरबाग के नाम से जाना जाता है, में अपने निवास को ध्वस्त करने के बाद वर्ष 1814 में करवाया था। बाद में, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर छतर मंज़िल पैलेस में चले गए, जहाँ उनके पिता रहते थे, और वहाँ से शासन किया।
नवाब सआदत अली खान की प्रिय पत्नी बेगम खुर्शीद ज़ादी का मकबरा उनके मकबरे के बगल में स्थित है। मकबरे के अंदर का फर्श काले और सफेद संगमरमर से ढका हुआ है, जो दुर्लभ संगमरमर संसाधनों और इसकी अत्यधिक उच्च कीमत के कारण भारत के इस हिस्से के लिए दुर्लभ है। दक्षिणी और पूर्वी हिस्से के बरामदों में सआदत अली खान की बेटियों और पत्नियों की कब्रें हैं।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 5 am–8 pm
Address: Sadat Ali Khan Tomb, Qaisar Bagh, Lucknow, Uttar Pradesh 226001
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9. Constantia House / La Martiniere Boys College (ला मार्टिनियर बॉयज़ कॉलेज):
कॉन्स्टेंटिया हाउस लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज के मैदान का एक हिस्सा है। यह एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थान भी है क्योंकि सिपाही विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेना ने इस घर को किले में बदल दिया था। आप अभी भी विद्रोहियों के खिलाफ रेजीडेंसी की रक्षा करने में ला मार्टिनियर कॉलेज के युवा छात्रों के योगदान की स्मृति वाली पट्टिकाएँ देख सकते हैं।
अब लखनऊ के प्रसिद्ध La Martiniere College का एक हिस्सा, कॉन्स्टेंटिया जनरल क्लाउड मार्टिन नामक एक फ्रांसीसी की एक भव्य रचना है। मार्टिन ने भारत में एक महलनुमा निवास बनाने के इरादे से, 1785 में इस संरचना का निर्माण शुरू किया था। हालाँकि, वह घर में रहने के लिए अधिक समय तक जीवित नहीं रह सके और वर्ष 1800 में उनकी मृत्यु हो गई। अंततः उनकी मृत्यु के दो साल बाद ही निर्माण पूरा हो सका।
इस इमारत का नाम मार्टिन के जीवन के मुख्य सिद्धांत, ''Labore et Constantia'' (ऊर्जा और दृढ़ता) के नाम पर रखा गया था। मरने से पहले, उन्होंने संपत्ति को शिक्षा के केंद्र के रूप में उपयोग करने की अपनी इच्छा बताते हुए एक वसीयत बनाई और इस प्रकार, कॉन्स्टेंटिया कॉलेज का एक अभिन्न अंग बन गया। इस राजसी इमारत की स्थापत्य भव्यता आपको बीते युग की याद दिलाएगी।
एक ऐतिहासिक स्थान होने के अलावा, कॉन्स्टेंटिया हाउस अपने विस्तृत कब्रिस्तान के लिए भी जाना जाता है।
ला मार्टिनियर कॉलेज के संस्थापक, क्लाउड मार्टिन भारत में ब्रिटिश सेना में एक अधिकारी थे, जिनकी 1800 में लखनऊ में मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी वसीयत छोड़ी, जिसके अनुसार, ल्योन, कलकत्ता और लखनऊ में स्कूलों के विकास के लिए कुछ धन आवंटित किया गया था। . उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कॉन्स्टेंटिया हाउस में उनका घर, कॉलेज भवन और आसपास के मैदान को कभी भी बेचा या नीलाम नहीं किया जाना चाहिए। क्लाउड मार्टिन की वसीयत का उद्देश्य युवा पुरुषों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने के लिए कॉन्स्टेंटिया हाउस को संरक्षित करना था। जनरल क्लाउड मार्टिन की मृत्यु के दिन को हर साल ला मार्टिनियर कॉलेज में "संस्थापक दिवस" के रूप में याद किया जाता है और मनाया जाता है।
ला मार्टिनियर बॉयज़ कॉलेज की स्थापना 18वीं सदी के समृद्ध फ्रांसीसी, Major General Claude Martin के दान से की गई थी। वह फ्रांसीसी सेना में मेजर थे, जो बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल सेना में शामिल हो गए।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 5 am–8 pm
Address: La Martiniere Road, La Martiniere Boys College Lucknow, Lucknow
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10. Hussainabad Clock Tower (हुसैनाबाद घण्टा घर):
मशहूर हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर अपनी समृद्ध धरोहर और बेहतरीन खूबसूरती के साथ लखनऊ के चुनिंदा लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
यह रूमी दरवाज़ा, बड़ा इमामबाड़ा और टीले वाली मस्जिद के क़रीब स्थित है। वर्ष 1881 में निर्मित, हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर को भारत के सभी क्लॉक टावरों में सबसे ऊंचा माना गया है।
हुसैनाबाद घण्टा घर भारत के लखनऊ शहर में स्थित एक क्लॉक टावर है। इसका निर्माण 1881 में संयुक्त प्रांत अवध के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जॉर्ज कूपर के आगमन को चिह्नित करने के लिए हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा किया गया था। इसे 1.75 लाख रुपये की लागत से बनाया गया था।
रिचर्ड रोस्केल बेने ने 67 मीटर (220 फीट) ऊंचाई वाली इस संरचना को डिजाइन किया, और यह विक्टोरियन और गॉथिक शैली के संरचनात्मक डिजाइनों को दर्शाता है। गनमेटल (Gun Metal) का उपयोग घड़ी के हिस्सों को बनाने में किया जाता है। इसके विशाल पेंडुलम की लंबाई 14 फीट है, और घड़ी का डायल 12-पूरे सोने के फूल और उसके चारों ओर घंटियों के आकार में डिज़ाइन किया गया है।
भारत का सबसे ऊंचा Clock Tower, जिसे घण्टा घर के नाम से भी जाना जाता है, लखनऊ के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
Entry Fee: Free (मुफ़्त)
Timing: 24x7 (किसी भी समय)
Address: Ghanta Ghar, 4344, Husainabad, Lucknow, Uttar Pradesh 226003
Location: Google Map directions
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